BSEB Class 8 Social Science History Chapter 6 Notes – अंग्रेजों का भारत में आगमन 17वीं शताब्दी में व्यापारिक उद्देश्य से हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने यहाँ के राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक तंत्र पर अधिकार जमा लिया। भारतीय समाज पर अंग्रेजी शासन का गहरा प्रभाव पड़ा, लेकिन इसके खिलाफ संघर्ष भी उतना ही प्रबल रहा।

यह संघर्ष केवल राजनीतिक नहीं था, बल्कि सामाजिक, धार्मिक, और आर्थिक आधार पर भी चलाया गया। इस लेख में हम अंग्रेजी शासन के खिलाफ हुए प्रमुख संघर्षों का विस्तृत विवरण देंगे।
BSEB Class 8 Social Science History Chapter 6 Notes – अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष
अंग्रेजी शासन का आरंभ और विस्तार
- व्यापारिक आगमन:- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 में हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य भारत से मसाले, कपड़ा, और अन्य कीमती वस्तुएं खरीदना था। प्रारंभ में कंपनी ने भारतीय राजाओं और नवाबों से व्यापार के लिए अधिकार प्राप्त किए। 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद कंपनी ने बंगाल पर अधिकार जमाया और भारत में अपने राजनीतिक और सैन्य प्रभाव को बढ़ाया। इस जीत के बाद, अंग्रेजों ने धीरे-धीरे पूरे भारत में अपना विस्तार किया और यहां के संसाधनों का दोहन शुरू किया।
- शासन का विस्तार :- 19वीं शताब्दी तक अंग्रेजों ने भारत पर पूरी तरह से नियंत्रण स्थापित कर लिया था। उन्होंने व्यापारिक और सैन्य ताकत के बल पर अनेक भारतीय रियासतों को अपने अधीन कर लिया। अंग्रेजी शासन के दौरान भारतीय समाज में अनेक प्रकार के सुधार किए गए, लेकिन ये सुधार अंग्रेजों के स्वार्थ को ध्यान में रखते हुए थे। इन सुधारों का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता पर नियंत्रण बनाए रखना था।
अंग्रेजी शासन का आरंभ और विस्तार
व्यापारिक आगमन:
- 1600 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य भारत से मसाले, कपड़ा, और अन्य कीमती वस्तुएं खरीदना था।
- 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद कंपनी ने बंगाल पर अधिकार जमाया और भारत में अपने राजनीतिक और सैन्य प्रभाव को बढ़ाया।
शासन का विस्तार:
- 19वीं शताब्दी तक अंग्रेजों ने पूरे भारत पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। उन्होंने कई भारतीय रियासतों को अपने अधीन कर लिया और देश के संसाधनों का दोहन शुरू किया।
- इस दौरान अंग्रेजों ने भारतीय समाज में अनेक प्रकार के सुधार भी किए, लेकिन ये सुधार अधिकतर उनके स्वार्थ के लिए थे।
- अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष
प्रारंभिक संघर्ष:
- संतान विद्रोह (1783): संतान समुदाय ने अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह किया। यह विद्रोह पश्चिम बंगाल के क्षेत्रों में हुआ।
- वेल्लोर विद्रोह (1806): यह विद्रोह दक्षिण भारत में हुआ था। भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज उठाई थी।
1857 का विद्रोह:
- विद्रोह का कारण: भारतीय सैनिकों के बीच कारतूसों को लेकर असंतोष था, जिनमें गाय और सूअर की चर्बी लगी होती थी। यह धार्मिक भावनाओं का अपमान था।
- प्रमुख नेता: इस विद्रोह के प्रमुख नेता थे – रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहिब, बहादुर शाह ज़फ़र, और तात्या टोपे।
- विद्रोह का विस्तार: यह विद्रोह पूरे उत्तर भारत में फैल गया और इसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है।
- परिणाम: अंग्रेजों ने इस विद्रोह को कुचल दिया, लेकिन इससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव पड़ी।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885):
- उद्देश्य: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उद्देश्य अंग्रेजी शासन के खिलाफ राजनीतिक संघर्ष को संगठित करना था।
- प्रमुख नेता: कांग्रेस के प्रमुख नेता थे – दादाभाई नौरोजी, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, और गोपाल कृष्ण गोखले।
- कार्यक्रम: कांग्रेस ने प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार से सुधारों की मांग की, लेकिन बाद में स्वतंत्रता की मांग को लेकर संघर्ष किया।
सत्याग्रह और अहिंसात्मक आंदोलन:
- महात्मा गांधी का नेतृत्व: महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का नया मार्ग अपनाया।
- असहयोग आंदोलन (1920): गांधी जी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाया, जिसमें लोगों ने अंग्रेजी शासन का विरोध किया।
- नमक सत्याग्रह (1930): गांधी जी ने दांडी मार्च के माध्यम से नमक कानून का विरोध किया और नमक सत्याग्रह की शुरुआत की।
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942): द्वितीय विश्व युद्ध के समय गांधी जी ने ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का आह्वान किया, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का निर्णायक चरण बना।
अंग्रेजी शासन के खिलाफ अन्य संघर्ष
क्रांतिकारी आंदोलन:
- भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव: इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया। भगत सिंह का फांसी पर चढ़ना भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।
- चंद्रशेखर आजाद: उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) की स्थापना की और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया।
किसान और मजदूर आंदोलन:
- किसान आंदोलन: अंग्रेजी शासन के दौरान किसानों पर अत्यधिक कर और जमींदारी प्रथा का अत्याचार बढ़ गया था। इसके खिलाफ किसान आंदोलनों का आयोजन हुआ, जिसमें प्रमुख आंदोलन थे – बारदोली सत्याग्रह, खेड़ा आंदोलन।
- मजदूर आंदोलन: अंग्रेजों ने भारतीय मजदूरों का शोषण किया। इसके खिलाफ मजदूरों ने अनेक आंदोलनों का आयोजन किया, जैसे – बॉम्बे टेक्सटाइल मजदूर आंदोलन।
धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलन:
- आर्य समाज और ब्रह्म समाज: इन आंदोलनों ने समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों का विरोध किया। साथ ही, अंग्रेजों के खिलाफ समाज को संगठित किया।
- अम्बेडकर का दलित आंदोलन: डॉ. भीमराव अंबेडकर ने दलित समाज के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई।
संघर्षों का परिणाम और स्वतंत्रता संग्राम की दिशा
राष्ट्रीय चेतना का उदय:
- संघर्षों का प्रभाव: विभिन्न संघर्षों ने भारतीय समाज में राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा दिया। लोगों में देशप्रेम की भावना जागृत हुई और स्वतंत्रता की मांग तेज हो गई।
- स्वतंत्रता संग्राम की दिशा: 20वीं शताब्दी में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने स्वतंत्रता की मांग को लेकर व्यापक संघर्ष किया, जिससे अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ।
स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख परिणाम:
- संविधान का निर्माण: भारतीय स्वतंत्रता के बाद संविधान का निर्माण हुआ, जिसमें स्वतंत्रता, समानता और न्याय के सिद्धांतों को प्रमुखता दी गई।
- भारत का विभाजन: स्वतंत्रता के साथ ही भारत का विभाजन हुआ, जिससे पाकिस्तान का निर्माण हुआ। इस विभाजन ने देश को कई सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ा।
निष्कर्ष
अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है। यह संघर्ष केवल स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए नहीं था, बल्कि यह भारतीय समाज के नवजागरण और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए भी था। विभिन्न आंदोलनों और विद्रोहों ने भारतीय समाज को संगठित किया और स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए प्रेरित किया। यह इतिहास हमें यह सिखाता है कि स्वतंत्रता की रक्षा के लिए हमें सदैव संघर्षरत रहना चाहिए और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित होकर कार्य करना चाहिए।