पाठ परिचय (Viswa Shanti)- आज विश्वभर में विभिन्न प्रकार के विवाद छिड़े हुए हैं जिनसे देशों में आन्तरिक और बाह्य अशान्ति फैली हुई है। सीमा, नदी-जल, धर्म, दल इत्यादि को लेकर स्वार्थप्रेरित होकर असहिष्णु हो गये हैं। इससे अशांति के वातावरण बना हुआ है। इस समस्या को उठाकर इसके निवारण के लिए इस पाठ में वर्तमान स्थिति का निरूपण किया गया है।
Bihar Board Sanskrit Viswa Shanti पाठ 13 — विश्वशांतिः (विश्व की शांति)
(पाठेऽस्मिन् संसारे वर्तमानस्य अशान्तिवातावरणस्य चित्रणं तत्समाधानोपायश्च निरूपितौ । देशेषु आन्तरिकी वाह्या च अशान्तिः वर्तते । तामुपेक्ष्य न कश्चित् स्वजीवनं नेतुं समर्थः । सेयम् अशान्तिः सार्वभौमिकी वर्तते इति दुःखस्य विषयः। सर्वे जनाः तया अशान्त्या चिन्तिताः सन्ति । संसारे तन्निवारणाय प्रयासाः क्रियन्ते ।)
इस पाठ में आज के संसार में व्याप्त अशांति का चित्रण किया गया है तथा उसके समाधान के उपाय बताए गए हैं। वर्तमान समय में देशों के अंदरूनी और बाहरी स्तर पर अशांति देखी जा रही है। इस कारण लोग शांति से जीवन व्यतीत नहीं कर पा रहे हैं। सम्पूर्ण विश्व में अशांति का वातावरण फैला हुआ है, जो चिंता का विषय है। इसे समाप्त करने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं।
Class 10th Sanskrit Viswa Shanti — पाठ 13 विश्वशांतिः (विश्व की शांति)
वर्तमाने संसारे प्रायशः सर्वेषु देशेषु उपद्रवः अशान्तिर्वा दृश्यते । क्वचिदेव शान्तं वातावरणं वर्तते । क्वचित् देशस्य आन्तरिकी समस्यामाश्रित्य कलहो वर्तते, तेन शत्रुराज्यानि मोदमानानि कलहं वर्धयन्ति । क्वचित् अनेकेषु राज्येषु परस्परं शीतयुद्धं प्रचलति । वस्तुतः संसारः अशान्तिसागरस्य कूलमध्यासीनो दृश्यते ।
वर्तमान विश्व में लगभग सभी देशों में अशांति और अव्यवस्था फैली हुई है। कहीं-कहीं ही शांति का वातावरण दिखाई देता है। कुछ देशों में आंतरिक संघर्ष चल रहे हैं, तो कुछ शत्रु राष्ट्र इन विवादों को और बढ़ावा देते हैं। कई देशों में परस्पर शीतयुद्ध की स्थिति बनी रहती है। इस प्रकार पूरा संसार मानो अशांति के सागर में डूबा हुआ प्रतीत होता है।
अशान्तिश्च मानवताविनाशाय कल्पते । अद्य विश्वविध्वंसकान्यस्त्राणि बहून्याविष्कृतानि सन्ति । तैरेव मानवतानाशस्य भयम् । अशान्तेः कारणं तस्याः निवारणोपायश्च सावधानतया चिन्तनीयौ । कारणे ज्ञाते निवारणस्य उपायोऽपि ज्ञायते इति नीतिः ।
अशांति मानवता के विनाश का कारण बन रही है। आज के समय में विनाशकारी अस्त्रों का अत्यधिक निर्माण हो चुका है, जिससे मानव अस्तित्व को खतरा है। अशांति के कारणों और उनके निवारण के उपायों पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक है, क्योंकि जब कारण ज्ञात हो जाता है, तो समाधान भी मिल जाता है।
वस्तुतः द्वेषः असहिष्णुता च अशान्तेः कारणद्वयम् । एको देशः अपरस्य उत्कर्षं दृष्ट्वा द्वेष्टि, तस्य देशस्य उत्कर्षनाशाय निरन्तरं प्रयतते । द्वेषः एवं असहिष्णुतां जनयति । इमौ दोषौ परस्परं वैरमुत्पादयतः । स्वार्थश्च वैरं प्रवर्धयति । स्वार्थप्रेरितो जनः अहंभावेन परस्य धर्मं जाति सम्पत्तिं क्षेत्रं भाषां वा न सहते ।
वास्तव में द्वेष और असहिष्णुता अशांति के दो मुख्य कारण हैं। एक देश दूसरे देश की उन्नति देखकर ईर्ष्या करता है और उसके विनाश का प्रयत्न करता है। द्वेष से असहनशीलता उत्पन्न होती है और दोनों मिलकर वैर की भावना को जन्म देते हैं। स्वार्थ भी वैर को बढ़ाता है। स्वार्थी व्यक्ति अहंकार में आकर दूसरों के धर्म, जाति, भाषा और संस्कृति को सहन नहीं कर पाता।
आत्मन एव सर्वमुत्कृष्टमिति मन्यते। राजनीतिज्ञाश्च अत्र विशेषेण प्रेरकाः । सामान्यो जनः न तथा विश्वसन्नपि बलेन प्रेरितो जायते । स्वार्थोपदेशः बलपूर्वकं निवारणीयः। परोपकारं प्रति यदि प्रवृत्तिः उत्पाद्यते तदा सर्वे स्वार्थं त्यजेयुः। अत्र महापुरुषाः विद्वांसः चिन्तकाश्च न विरलाः सन्ति ।
लोग अपने ही विकास को श्रेष्ठ मानते हैं। इस गलत सोच को बढ़ाने में राजनेता विशेष भूमिका निभाते हैं। सामान्य लोग भी उनके प्रभाव में आ जाते हैं। इसलिए स्वार्थ की प्रवृत्ति को बलपूर्वक रोका जाना चाहिए। जब समाज में परोपकार की भावना जागृत होगी, तो लोग स्वार्थ का त्याग करेंगे। इस दिशा में महापुरुष, विद्वान और चिंतक सक्रिय रहते हैं।
तेषां कर्तव्यमिदं यत् जने-जने, समाजे-समाजे, राज्ये-राज्ये च परमार्थ वृत्तिं जनयेयुः । शुष्कः उपदेशश्च न पर्याप्तः, प्रत्युत तस्य कार्यान्वयनञ्च जीवनेऽनिवार्यम् । उक्तञ्च – ज्ञानं भारः क्रियां विना। देशानां मध्ये च विवादान् शमयितुमेव संयुक्तराष्ट्रसंघप्रभृतयः संस्थाः सन्ति । ताश्च काले-काले आशङ्कितमपि विश्वयुद्धं निवारयन्ति ।
इन विद्वानों और नेताओं का कर्तव्य है कि वे हर व्यक्ति, समाज और देश में परोपकार की भावना का प्रचार करें। केवल उपदेश पर्याप्त नहीं होता, उसके अनुरूप आचरण भी आवश्यक है। कहा गया है कि “कर्म के बिना ज्ञान बोझ समान होता है।” देशों के बीच विवादों को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएँ कार्यरत हैं, जो समय-समय पर संभावित विश्वयुद्ध को टालती हैं।
भगवान बुद्धः पुराकाले एव वैरेण वैरस्य शमनम् असम्भवं प्रोक्तवान् । अवैरेण करुणया मैत्रीभावेन च वैरस्य शान्तिः भवतीति सर्वे मन्यन्ते ।। भारतीयाः नीतिकाराः सत्यमेव उद्घोषयन्ति –
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥
प्राचीन समय में भगवान बुद्ध ने कहा था कि वैर से वैर समाप्त नहीं होता। मित्रता, करुणा और प्रेम के भाव से ही शत्रुता समाप्त की जा सकती है। भारतीय नीति में भी कहा गया है —
“यह मेरा है, वह दूसरे का है — ऐसा विचार संकीर्ण मन वालों का होता है। उदार चरित्र वाले लोग तो संपूर्ण विश्व को अपना परिवार मानते हैं।”
परपीडनम् आत्मनाशाय जायते, परोपकारश्च शान्तिकारणं भवति । अद्यापि परस्य देशस्य संकटकाले अन्ये देशाः सहायताराशि सामग्री च प्रेषयन्ति इति विश्वशान्तेः सूर्योदयो दृश्यते ।
दूसरों को पीड़ा पहुँचाना अपने ही विनाश का कारण बनता है, जबकि दूसरों की सहायता करना शांति लाता है। आज भी जब कोई देश संकट में होता है, तो अन्य देश उसकी सहायता के लिए आगे आते हैं। यही विश्वशांति के उदय का संकेत है।
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✍️ लेखक परिचय





