उपनिवेशवाद एवं जनजातीय समाज – BSEB Class 8 Social science History Chapter 4 Notes

BSEB Class 8 Social science History Chapter 4 Notes – उपनिवेशवाद एक ऐसा दौर था जब यूरोपीय शक्तियों ने एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के देशों पर अपना अधिकार जमाया और उन्हें अपने उपनिवेश के रूप में स्थापित किया। इस प्रक्रिया में उन्होंने इन क्षेत्रों की सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक संरचनाओं को प्रभावित किया।

Class 8 Social science History Chapter 4 Notes

भारतीय उपमहाद्वीप में भी उपनिवेशवाद का प्रभाव गहरा था, और इसका सबसे अधिक प्रभाव जनजातीय समाजों पर पड़ा। इस लेख में हम उपनिवेशवाद के प्रभावों को समझेंगे, विशेषकर जनजातीय समाजों पर इसके प्रभाव को।

उपनिवेशवाद एवं जनजातीय समाज – BSEB Class 8 Social science History Chapter 4 Notes

उपनिवेशवाद ने जनजातीय समाजों पर गहरा प्रभाव डाला, जिसमें उनकी आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक संरचनाओं का विनाश शामिल था। हालांकि, जनजातीय समाजों ने उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष किया और अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। इस संघर्ष ने जनजातीय समाजों को जागरूक किया और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति सचेत किया। आज भी, जनजातीय समाज अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं और अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का प्रयास कर रहे हैं।

उपनिवेशवाद का परिचय:- उपनिवेशवाद का मतलब होता है किसी एक शक्तिशाली देश द्वारा किसी दूसरे देश या क्षेत्र को अपने अधीन करना और वहाँ की प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करना। उपनिवेशवाद का मुख्य उद्देश्य था आर्थिक लाभ प्राप्त करना।

उपनिवेशवाद के कारण:

  • आर्थिक कारण: उपनिवेशवादी देशों का मुख्य उद्देश्य था अपने देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना। वे उपनिवेशों से कच्चे माल को सस्ते में प्राप्त करते थे और फिर इसे अपने देश में निर्मित करके मुनाफे के साथ बेचते थे।
  • राजनीतिक कारण: कई यूरोपीय देशों के बीच वैश्विक सत्ता और अधिकार क्षेत्र बढ़ाने की होड़ थी। वे अपने राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने के लिए विभिन्न देशों को उपनिवेश बनाते थे।
  • धार्मिक और सांस्कृतिक कारण: उपनिवेशवादियों का मानना था कि वे अपने धर्म और संस्कृति को दुनिया के दूसरे हिस्सों में फैलाकर “सभ्य” बना रहे हैं।

भारत में उपनिवेशवाद:

  • ब्रिटिश शासन: भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद का आगमन 18वीं शताब्दी में हुआ, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के विभिन्न हिस्सों पर अपना अधिकार जमाना शुरू किया। इसके बाद, भारत ब्रिटिश उपनिवेश के रूप में लगभग 200 वर्षों तक रहा।
  • नियंत्रण और प्रशासन: ब्रिटिशों ने भारतीय क्षेत्रों पर कब्जा कर उनके प्रशासन को नियंत्रित किया और वहां की सम्पत्ति का शोषण किया।

जनजातीय समाज का परिचय:- भारत में जनजातीय समाज एक महत्वपूर्ण सामाजिक समूह है, जिनकी अपनी अलग-अलग सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान होती है।

जनजातीय समाज की विशेषताएँ:

  • स्वतंत्रता: जनजातीय समाज अपने आप में स्वतंत्र और आत्मनिर्भर होता है। वे अपने नियम और कानूनों के अनुसार जीवन यापन करते हैं।
  • प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता: जनजातीय समाज प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होता है, जैसे जंगल, पानी, और वन्यजीव।
  • सामाजिक संरचना: जनजातीय समाजों की सामाजिक संरचना सामूहिकता पर आधारित होती है, जहाँ सब लोग मिलकर काम करते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं।

भारत में प्रमुख जनजातीय समूह:

  • गोंड: यह भारत के मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और ओडिशा में पाए जाने वाले प्रमुख जनजातीय समूहों में से एक है।
  • संथाल: संथाल जनजाति झारखंड, पश्चिम बंगाल, और उड़ीसा में निवास करती है।
  • भील: भील जनजाति राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, और महाराष्ट्र में पाई जाती है।

उपनिवेशवाद और जनजातीय समाज:- उपनिवेशवाद का प्रभाव जनजातीय समाजों पर बहुत ही नकारात्मक रहा। उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर उपनिवेशवाद ने गहरा प्रभाव डाला।

आर्थिक प्रभाव:

  • भूमि हरण: उपनिवेशवादियों ने जनजातीय लोगों की भूमि को अपने अधिकार में ले लिया। इन भूमियों का उपयोग कृषि, खनन और वन संसाधनों के दोहन के लिए किया गया।
  • जंगलों पर नियंत्रण: ब्रिटिश शासन ने जंगलों पर अपने नियंत्रण को मजबूत किया और जनजातीय लोगों को उनके परंपरागत वन संसाधनों से वंचित कर दिया।
  • श्रम शोषण: जनजातीय लोगों को मजदूरी के लिए मजबूर किया गया, जहाँ उन्हें अत्यधिक श्रम के बदले में बहुत ही कम वेतन मिलता था।

सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव:

  • संस्कृति और परंपराओं का विनाश: उपनिवेशवादियों ने जनजातीय समाजों की संस्कृति और परंपराओं को समाप्त करने का प्रयास किया। उन्होंने उनकी भाषा, धार्मिक विश्वासों, और सामाजिक संरचनाओं को प्रभावित किया।
  • ईसाई धर्म का प्रसार: उपनिवेशवादियों ने जनजातीय समाजों में ईसाई धर्म का प्रचार किया, जिससे उनकी पारंपरिक धार्मिक मान्यताओं में परिवर्तन आया।
  • शिक्षा और सामाजिक बदलाव: उपनिवेशवादियों ने अपने शिक्षा प्रणाली को लागू किया, जिससे जनजातीय समाजों में शिक्षा का प्रसार हुआ, लेकिन इसके साथ ही उनकी पारंपरिक शिक्षा प्रणाली कमजोर हो गई।

राजनीतिक प्रभाव:

  • प्रशासनिक नियंत्रण: उपनिवेशवादियों ने जनजातीय क्षेत्रों पर अपना प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित किया, जिससे जनजातीय लोग अपने खुद के कानून और शासन से वंचित हो गए।
  • विद्रोह और प्रतिरोध: उपनिवेशवाद के खिलाफ जनजातीय समाजों ने कई विद्रोह किए, जैसे संथाल विद्रोह, भील विद्रोह, और कोल विद्रोह।

उपनिवेशवाद के खिलाफ जनजातीय प्रतिरोध:- जनजातीय समाजों ने उपनिवेशवाद के खिलाफ कई आंदोलन और विद्रोह किए।

संथाल विद्रोह (1855-56):

  • कारण: संथाल विद्रोह का मुख्य कारण ब्रिटिश शासकों द्वारा संथालों की भूमि पर कब्जा और उनके ऊपर अत्याचार था।
  • प्रमुख नेता: सिद्धू और कान्हू इस विद्रोह के प्रमुख नेता थे।
  • परिणाम: विद्रोह को कुचल दिया गया, लेकिन इसने ब्रिटिश शासन को जनजातीय समाज के प्रति अपने रवैये में बदलाव लाने पर मजबूर किया।

भील विद्रोह (1825-1858):

  • कारण: भील विद्रोह का कारण ब्रिटिश शासकों द्वारा भीलों की भूमि पर अधिकार जमाना और उनके अधिकारों का हनन करना था।
  • प्रमुख नेता: भील विद्रोह का नेतृत्व गोविंद गुरु और तात्या भील ने किया।
  • परिणाम: भील विद्रोह को भी दबा दिया गया, लेकिन इससे जनजातीय समाज में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी।

कोल विद्रोह (1831-32):

  • कारण: कोल विद्रोह का मुख्य कारण ब्रिटिश शासन द्वारा कोलों की जमीनों पर कब्जा और उनके अधिकारों का हनन था।
  • प्रमुख नेता: बुद्धु भगत और जतरा भगत कोल विद्रोह के प्रमुख नेता थे।
  • परिणाम: विद्रोह को दबा दिया गया, लेकिन यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनजातीय समाज के विरोध का प्रतीक बन गया।

निष्कर्ष

उपनिवेशवाद और जनजातीय समाज का इतिहास भारतीय समाज के महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करता है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि कैसे बाहरी शक्तियों ने हमारे देश की संस्कृति और समाज को प्रभावित किया, और कैसे जनजातीय समाज ने अपनी संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। उपनिवेशवाद का अध्ययन हमें अपने समाज के विकास को समझने में सहायता करता है, और यह प्रेरणा देता है कि हमें अपने अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सदैव सचेत और संघर्षरत रहना चाहिए।

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