राष्ट्रीय आंदोलन (1885-1947) – class 8 social science history chapter 12 notes भारत के इतिहास का एक ऐसा महत्वपूर्ण अध्याय है जिसने देश को स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया। यह आंदोलन भारतीय जनता की ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता प्राप्त करने की आकांक्षा का प्रतीक था। 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से लेकर 1947 में भारत की स्वतंत्रता तक, इस आंदोलन ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे और कई वीर नायकों का उदय हुआ जिन्होंने अपने अद्वितीय संघर्ष और बलिदान से इस आंदोलन को सफल बनाया।

इस लेख में हम राष्ट्रीय आंदोलन के विभिन्न चरणों, प्रमुख नेताओं, और इस आंदोलन की सफलता में योगदान देने वाली घटनाओं का विस्तार से अध्ययन करेंगे।
Class 8 Social Science History Chapter 12 Notes – राष्ट्रीय आन्दोलन (1885-1947)
राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की स्थापना से हुई। इसकी स्थापना का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के अंतर्गत भारतीय जनता के हितों की रक्षा करना और उन्हें सरकार में प्रतिनिधित्व दिलाना था। कांग्रेस के प्रारंभिक वर्षों में इसका नेतृत्व उदारवादी नेताओं के हाथों में था, जो संवैधानिक तरीकों से सुधार की मांग कर रहे थे।
प्रमुख नेता:
- दादा भाई नौरोजी: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पहले नेताओं में से एक, उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय जनता की आर्थिक स्थिति को उजागर किया।
- गोपाल कृष्ण गोखले: गोखले भी उदारवादी धारा के प्रमुख नेता थे और उन्होंने संवैधानिक सुधारों के माध्यम से स्वतंत्रता की मांग की।
बंगाल विभाजन और स्वदेशी आंदोलन (1905):- 1905 में, लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया, जिसके खिलाफ भारतीय जनता में आक्रोश फैल गया। बंगाल विभाजन को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के एक प्रमुख मोड़ के रूप में देखा जाता है, जिसने स्वदेशी आंदोलन को जन्म दिया। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश वस्त्रों और वस्तुओं का बहिष्कार करना और स्वदेशी वस्त्रों का प्रयोग बढ़ाना था।
स्वदेशी आंदोलन के प्रभाव:
- ब्रिटिश वस्त्रों का बहिष्कार हुआ और भारतीय हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन मिला।
- भारतीय जनता में राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ और स्वतंत्रता की मांग जोर पकड़ने लगी।
कांग्रेस का गरमदल और नरमदल विभाजन (1907):- 1907 में कांग्रेस के दो प्रमुख धड़े बन गए – गरमदल और नरमदल। गरमदल के नेता बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल थे, जो सशक्त आंदोलन और स्वराज्य की मांग कर रहे थे। वहीं, नरमदल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोज शाह मेहता, और दादा भाई नौरोजी थे, जो संवैधानिक सुधारों के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहते थे।
प्रमुख नेता:
- बाल गंगाधर तिलक: गरमदल के प्रमुख नेता, जिन्होंने “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” का नारा दिया।
- लाला लाजपत राय: लाला लाजपत राय ने गरम दल को मजबूती प्रदान की और पंजाब में स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया।
गांधी युग और असहयोग आंदोलन (1919-1922):- महात्मा गांधी का भारतीय राजनीति में आगमन राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में एक नया युग लेकर आया। 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद, गांधी जी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक असहयोग का प्रदर्शन करना था।
असहयोग आंदोलन के प्रमुख पहलू:
- भारतीय जनता ने ब्रिटिश शैक्षणिक संस्थानों, न्यायालयों, और प्रशासनिक संस्थानों का बहिष्कार किया।
- खादी वस्त्रों का प्रचार किया गया और स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा मिला।
- गांधी जी की अहिंसक प्रतिरोध की नीति ने आंदोलन को व्यापक जन समर्थन दिलाया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन और नमक सत्याग्रह (1930):- 1930 में, गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की, जिसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश कानूनों का पालन न करना था। इस आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण भाग नमक सत्याग्रह था, जिसमें गांधी जी ने दांडी मार्च करके नमक कानून का उल्लंघन किया।
नमक सत्याग्रह:
- गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को अहमदाबाद से दांडी तक की यात्रा शुरू की, जिसे दांडी मार्च कहा गया।
- इस यात्रा के दौरान गांधी जी ने नमक कानून को तोड़ा और ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक जन आंदोलन को जन्म दिया।
- इस आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन को और भी गति प्रदान की और देश के विभिन्न हिस्सों में ब्रिटिश कानूनों का विरोध शुरू हो गया।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942):- 1942 में, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करना था। गांधी जी के “करो या मरो” के नारे ने भारतीय जनता में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए नया जोश भर दिया।
भारत छोड़ो आंदोलन के प्रभाव:–
- इस आंदोलन ने भारतीय जनता को एकजुट किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक विरोध का मंच तैयार किया।
- हालांकि ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिए कठोर कदम उठाए, लेकिन यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए निर्णायक साबित हुआ।
राष्ट्रीय आंदोलन के अन्य महत्वपूर्ण पहलू
- रौलट एक्ट (1919): यह कानून ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित किया गया था, जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमे के जेल में डालने का अधिकार दिया गया था। इस कानून के खिलाफ भारतीय जनता में भारी विरोध हुआ।
- खिलाफत आंदोलन: खिलाफत आंदोलन का उद्देश्य तुर्की के खलीफा की सत्ता को पुनः स्थापित करना था। इस आंदोलन को भारतीय मुसलमानों ने व्यापक समर्थन दिया और यह गांधी जी के असहयोग आंदोलन के साथ जुड़ गया।
- साइमन कमीशन (1928): ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में संवैधानिक सुधारों की जांच के लिए भेजा गया साइमन कमीशन भारतीय जनता के विरोध का कारण बना। इसका विरोध करते हुए “साइमन वापस जाओ” का नारा लगाया गया।
- पूना पैक्ट (1932): महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के बीच हुआ यह समझौता दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण था। इस समझौते ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान दलितों की स्थिति को सुधारने में मदद की।
राष्ट्रीय आंदोलन के परिणाम:- राष्ट्रीय आंदोलन के परिणामस्वरूप भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली। यह आंदोलन भारतीय जनता की इच्छाशक्ति, उनके बलिदान, और उनके नेताओं के अद्वितीय नेतृत्व का परिणाम था। इस आंदोलन ने भारतीय समाज में स्वतंत्रता, समानता, और न्याय के मूल्यों को स्थापित किया।
स्वतंत्रता के बाद:
- स्वतंत्रता के बाद, भारत ने एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में अपने पथ पर आगे बढ़ना शुरू किया।
- भारतीय संविधान का निर्माण हुआ, जिसमें नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को परिभाषित किया गया।
- भारतीय समाज में सुधार और विकास के नए युग की शुरुआत हुई, जिसमें सभी वर्गों को समान अवसर और अधिकार प्रदान किए गए।
निष्कर्ष
राष्ट्रीय आंदोलन (1885-1947) भारत के स्वतंत्रता संग्राम का वह महत्वपूर्ण दौर था जिसने देश को ब्रिटिश शासन से मुक्त किया। इस आंदोलन के दौरान भारतीय जनता ने संगठित होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया और स्वतंत्रता प्राप्त की। इस आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चंद्र बोस, और जवाहरलाल नेहरू जैसे महान नेताओं ने अद्वितीय नेतृत्व दिखाया और भारतीय जनता को स्वतंत्रता की राह पर अग्रसर किया।
Class 8 Social Science History Chapter 12 Notes के संदर्भ में, राष्ट्रीय आंदोलन के इस व्यापक इतिहास को समझना छात्रों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल हमारे स्वतंत्रता संग्राम की गाथा को उजागर करता है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि कैसे एकता, संघर्ष, और नेतृत्व के माध्यम से बड़े से बड़े संकटों का सामना किया जा सकता है।