“संसदीय सरकार” का तात्पर्य एक ऐसी राजनीतिक प्रणाली से है जिसमें सरकार का गठन और संचालन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से किया जाता है। यह सरकार की एक प्रणाली है जो लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आधारित होती है। “Bihar Board Class 8th SST Civics Chapter 3” के अंतर्गत, छात्रों को संसदीय सरकार के कार्य, उसकी संरचना, और उसके महत्व के बारे में जानकारी दी जाती है।

संसदीय सरकार एक ऐसी प्रणाली है जो लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आधारित होती है। “Bihar Board Class 8th SST Civics Chapter 3 Notes” के माध्यम से छात्रों को इस प्रणाली की संरचना, कार्य, और चुनौतियों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
Bihar board class 8th SST civics chapter 3 – संसदीय सरकार
संसदीय सरकार एक ऐसी प्रणाली है जिसमें विधायिका (संसद) और कार्यपालिका (सरकार) के बीच घनिष्ठ संबंध होता है। इसमें संसद के सदस्य ही सरकार का गठन करते हैं। संसदीय प्रणाली में प्रमुख दो सदन होते हैं – उच्च सदन (राज्यसभा) और निम्न सदन (लोकसभा)। इन दोनों सदनों के सदस्य जनता द्वारा सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं।
लोकसभा और राज्यसभा:- संसदीय सरकार की संरचना में लोकसभा और राज्यसभा का महत्वपूर्ण स्थान होता है:
- लोकसभा (House of the People): लोकसभा भारत की संसद का निम्न सदन है। इसके सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं। लोकसभा में कुल 545 सदस्य होते हैं, जिनमें से 543 सदस्य आम चुनावों के माध्यम से चुने जाते हैं, जबकि 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते हैं। लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन इसे भंग भी किया जा सकता है।
- राज्यसभा (Council of States): राज्यसभा भारत की संसद का उच्च सदन है। इसके सदस्य राज्य विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं। राज्यसभा में कुल 245 सदस्य होते हैं, जिनमें से 233 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा चुने जाते हैं और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते हैं। राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जिसे भंग नहीं किया जा सकता।
संसदीय सरकार के प्रमुख तत्व:- संसदीय सरकार की प्रणाली के कुछ प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं:
- लोकतंत्र: संसदीय सरकार लोकतंत्र पर आधारित होती है, जहाँ जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है। इन चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से ही सरकार का गठन और संचालन होता है।
- विधायिका और कार्यपालिका का घनिष्ठ संबंध: संसदीय प्रणाली में विधायिका और कार्यपालिका के बीच घनिष्ठ संबंध होता है। कार्यपालिका, जो कि प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद होती है, विधायिका (संसद) के प्रति उत्तरदायी होती है।
- प्रधानमंत्री का नेतृत्व: संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, लेकिन वह लोकसभा के बहुमत वाले दल का नेता होता है।
- मंत्रिपरिषद का गठन: प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद का गठन किया जाता है। मंत्रिपरिषद के सदस्य भी संसद के सदस्य होते हैं, और यह पूरी कार्यपालिका का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- संवैधानिक नियंत्रण: संसदीय सरकार में संवैधानिक नियंत्रण और संतुलन बनाए रखने के लिए विभिन्न संवैधानिक प्रावधान होते हैं। ये प्रावधान सरकार की कार्यप्रणाली को नियंत्रित और संतुलित करते हैं।
भारत में संसदीय सरकार का विकास:- भारत में संसदीय सरकार की प्रणाली का विकास ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के प्रयासों से देश में लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव पड़ी। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया और 1950 में भारतीय संविधान लागू किया गया, जिसमें संसदीय प्रणाली को मान्यता दी गई।
प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की भूमिका:- संसदीय सरकार में प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है:
- प्रधानमंत्री: प्रधानमंत्री देश की कार्यपालिका का प्रमुख होता है। वह सरकार के कार्यों का नेतृत्व करता है और नीतियों का निर्माण करता है। प्रधानमंत्री का कार्यकाल उस समय तक होता है जब तक वह लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त करता है।
- मंत्रिपरिषद: मंत्रिपरिषद, प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कार्य करती है। यह सरकार की विभिन्न विभागों की जिम्मेदारी निभाती है और उन्हें संचालित करती है। मंत्रिपरिषद के सदस्य संसद में अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी होते हैं और उन्हें समय-समय पर संसद के समक्ष जवाबदेही देनी पड़ती है।
संसदीय सरकार की विशेषताएँ:- संसदीय सरकार की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- उत्तरदायित्व: संसदीय प्रणाली में सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी होती है। यदि संसद को सरकार के कार्यों पर विश्वास नहीं होता है, तो वह अविश्वास प्रस्ताव पास कर सकती है और सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है।
- संवाद: संसदीय प्रणाली में संवाद और चर्चा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। संसद में विभिन्न मुद्दों पर खुलकर बहस होती है, जिससे नीतियों और कानूनों का निर्माण होता है।
- लोकतांत्रिक अधिकार: संसदीय प्रणाली में जनता को अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार होता है। यह प्रतिनिधि उनके विचारों और इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और सरकार में उनकी आवाज बनते हैं।
- अविभाजित सत्ता: संसदीय प्रणाली में सत्ता का विभाजन नहीं होता है। सरकार विधायिका और कार्यपालिका दोनों का संचालन करती है, जिससे सरकार के कार्यों में एकरूपता बनी रहती है।
संसदीय सरकार की चुनौतियाँ:- संसदीय सरकार के समक्ष कुछ चुनौतियाँ भी होती हैं:
- राजनीतिक अस्थिरता: संसदीय प्रणाली में सरकार का भविष्य लोकसभा के बहुमत पर निर्भर करता है। यदि बहुमत स्थिर नहीं होता है, तो सरकार को गिराने का खतरा बना रहता है।
- पक्षपात: संसदीय प्रणाली में कभी-कभी राजनीतिक दलों के बीच पक्षपात की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे सरकार के कामकाज में बाधा उत्पन्न होती है।
- धनबल और बाहुबल का प्रभाव: चुनावों में धनबल और बाहुबल का उपयोग संसदीय प्रणाली को कमजोर कर सकता है। यह समस्या लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती बन सकती है।
निष्कर्ष
संसदीय सरकार एक ऐसी प्रणाली है जो लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आधारित होती है। “Bihar Board Class 8th SST Civics Chapter 3 Notes” के माध्यम से छात्रों को इस प्रणाली की संरचना, कार्य, और चुनौतियों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। भारतीय लोकतंत्र में संसदीय प्रणाली का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि यह जनता के अधिकारों की रक्षा करती है और सरकार को उनके प्रति उत्तरदायी बनाती है। संसदीय प्रणाली के माध्यम से ही देश में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती हैं और देश की समृद्धि और विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।